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संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ*

🌸  *संस्कृतं संस्कृतेर्मूलम्*  🌸 🍁 * संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ* 🍁 *1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है।* *2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है।* *3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती।* *4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान।* *5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।* *6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार।* *7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस।* *8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा।* *9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।* *10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने।* *11. अतिदर्पे हता लंका। – घमंडी का सिर नीचा।* *12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना।* *13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।* *14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना।* *15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले।* *16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है।* *17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता।* *18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं ...