तुलसी पूरब पाप ते* *हरि चर्चा न सुहात ।*
*तुलसी पूरब पाप ते* *हरि चर्चा न सुहात ।* *जैसे ज्वरके जोरसे* *भूख बिदा हो जात ॥* *जब ज्वर (बुखार) का जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता । उसको अन्नमें भी गन्ध आती है । जैसे भीतरमें बुखारका जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता, वैसे ही जिसके पापोंका जोर ज्यादा होता है, वह भजन कर नहीं सकता, सत्संगमें जा नहीं सकता ।* *इसलिये सज्जनो ! एक बातपर ध्यान दें । जो भाई सत्संगमें रुचि रखते हैं, सत्संगमें जाते हैं, नाम लेते हैं, जप करते हैं, उन पुरुषोंको मामूली नहीं समझना चाहिये । वे साधारण आदमी नहीं हैं । वे भगवान्का भजन करते हैं, शुद्ध हैं और भगवान्के कृपा-पात्र हैं ।* *परन्तु जो भगवान्की तरफ चलते हैं, उनको अपनी बहादुरी नहीं माननी चाहिये कि हम बड़े अच्छे हैं । हमें तो भगवान्की कृपा माननी चाहिये, जिससे हमें सत्संग, भजन-ध्यानका मौका मिलता है ।* *हमें ऐसा समझना चाहिये कि ऐसे कलियुगके समयमें हमें भगवान्की बात सुननेको मिलती है, हम भगवान्का नाम लेते हैं, हमपर भगवान्की बड़ी कृपा है ।* *जैसे नदीका...